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ਰਾਸ਼ਟਰੀ

सांसद मनीष तिवारी ने यूटी में डेपुटेशन पर आए अधिकारियों पर की टिप्पणी

September 23, 2024 07:53 AM


कहा: मोहाली का बॉर्डर टपके हो जाते है सुए की तरह सीेधे


चंडीगढ़ यूटी में आते ही बदल जाता है मिजाज


प्रशासनिक ढांचे के कारण समस्या, इसे बदलने की जरूरत

रमेश गोयत


चंडीगढ़, 22 सितंबर 2024। चंडीगढ़ से सांसद मनीष तिवारी ने चंडीगढ़ यूटी में पंजाब से डेपुटेशन पर आए आईएएस, पीसीएस व अन्य अधिकारियों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि जेडे आफिसर मोहाली का बॉर्डर टपके सुए बरगे सीेधे हो जाते है। चंडीगढ़ यूटी में आते ही कुछ और ही मिजाज के हो जांदे है। मुझें नही पता कि शहर के उस पार और इस पार मानसिकता का इतना फर्क पड़ जादा है।


यह शब्द यूटी चंडीगढ़ के सरकारी और नगर निगम कर्मचारियों की को-आॅर्डिनेशन कमेटी द्वारा शनिवार को आयोजित 7वीं डेलिगेट्स कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए सांसद मनीष तिवारी कहे।

उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि "मोहाली का बॉर्डर पार करते ही ये अधिकारी जैसे सुई की तरह सीधे हो जाते हैं, " और चंडीगढ़ पहुंचते ही उनका मिजाज बदल जाता है।


तिवारी ने कहा कि वही बुनियादी जड़ शहर की समस्या है। चंडीगढ़ जब बना था तो केन्द्र शासित प्रदेश नही होना चाहिए था, हालात ऐसे बने की केन्द्र शासित प्रदेश यूटी बन गया। दोनो सुबों की राजधानी बन गई, पजाब व हरियाणा की। जो प्रशासानिक ढांचा बना था वह कुछ समय के लिए बना था। मगर हालात बन्दे गए, लोगो का भी नजरियां बन गया, वो एक एडओक ढांचा परमानेट हो गया। 1960 से लेकर 1996 तक कोई राजनितिक रिपरजेंटेशन नही थी। एक एमपी था, एसपी का कार्य देश के कानून बनाना। बाकी शहर आॅफिसर चलाते थे। 1996 में नगर निगम बन गई। उसके बाद कुछ राजनितिक लोग इलेक्टिड होकर जाने शुरू हो गए। मै इस शहर में जन्मा हु, मै जिम्मेदारी से कह सकता हुं, दक्षिणी सैक्टर का विकास जैसे पार्क व अन्य कार्य नगर निगम बनने के बाद हुए है। शहर में आज भी बहुत समस्या है। जाहे कर्मचारियो की समस्या हो, कोई पोल्टिकल इनपूट नही, जाहे कोई राजनितिक पार्टी किसी भी पार्टी से सम्बंधित हो। वह हर चीज कों मानविक द्ष्टि से देखता हे। लोकराज में आखिरी फैसले वजीर लेते है, क्योकि लोगो की दुख: तकलीफ समझते है, लकीर के फकीर नही बन जाते है। चाहे कानून तोड़ कर भी कार्य करना पड़े तो कानून में रिलैक्स करके कार्य करते है। शहर में इस प्रशासनिक ढांचे के कारण ही समस्या है। इसे बदलने की जरूरत है। जिसके कारण शहर वासियों, कर्मचारियों व आरडब्ब्लूए एसोसिएशन से कुछ करने से पहले पुछ पड़ताल करनी जरूरी है। कर्मचारियों का यह कार्य नही है कि दोपहर में गेट पर धरना दो। जब आप किसी कोई मजबूर कर देते हो तो उन्होने हको की रखवाली के लिए मजबूरन अपनी लड़ाई लड़नी पडती है। जब तक बुनियादी तौर पर जब तक उसे सेक नही लगता हो कि मेरे साथ नाईनसाफी हो रही है, उसे जब यह लगे की उसकी कोई सुनवाई नही हो रही, तो मजबूर उसे अपने कहो के लिए लड़ना पडता है।

तिवारी ने कर्मचारियों को भरोसा दिलवाया कि मै जरूरत पड़ी तो आपकी मांगो को लोकसभा में भी उठाउगां। अपने अधिकारों के लिए लगातार विभिन्न स्तरों पर संघर्ष कर रहे कर्मचारियों की मांगों का समर्थन करते हुए, उनके लिए संसद से सड़क तक आवाज उठाने का भरोसा दिया है। कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए, सांसद ने कहा कि किसी भी स्तर पर कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा होनी चाहिए। सांसद ने जोर देते हुए कहा कि बेहद दु:ख की बात है कि इस शहर और देश का प्रशासन चलाने वाले कर्मचारियों को भी अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। इस कॉन्फ्रेंस में 37 यूनियनों के 500 प्रतिनिधियों और 60 पर्यवेक्षकों ने भाग लिया। समन्वय समिति लंबे समय से आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए एक सुरक्षित नीति बनाने, समान काम के लिए समान वेतन, आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए बोनस, डीसी रेट्स में रह गई त्रुटियों को दूर करने और रिक्त पदों को भरने समेत कई अन्य मांगें उठा रही है।

 

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