Saturday, April 19, 2025
 

ਕਾਰੋਬਾਰ

देविदास श्रावण नाईकरे ने दिया सफलता का मूलमंत्र

April 18, 2025 08:55 PM
देविदास श्रावण नाईकरे ने दिया सफलता का मूलमंत्र
 
 
 
मुंबई (अनिल बेदाग) : नेक इरादे और कर्म की शक्ति से असंभव भी संभव बन जाता है। यह मंत्र श्री. देविदास श्रावण नाईकरे ने न सिर्फ आत्मसात किया, बल्कि पिछले 18 वर्षों में लाखों उद्यमियों के जीवन में अमृत बनकर बहाया है।
 
देविदास ग्रुप ऑफ कंपनी के संस्थापक के रूप में उन्होंने यह सिद्ध किया कि असली सफलता केवल आर्थिक लाभ नहीं, बल्कि आंतरिक शांति, सकारात्मक ऊर्जा और समाज में योगदान का समागम है। उनका यही दर्शन चार दिन चले “Ultimate Millionaire Blueprint” कार्यक्रम में उजागर हुआ, जिसे लोनावला की मनोहारी वादियों में आयोजित किया गया।
 
 
कार्यक्रम के चौथे दिन मंच पर चमकता रहा एक भव्य अवॉर्ड समारोह, जिसमें पूरे महाराष्ट्र से चुनिंदा व्यवसायों को उनके नवाचार, साहसिक दृष्टिकोण और समाजपरक योगदान के लिए सम्मानित किया गया। इस यादगार शाम की शोभा तब और बढ़ी जब बॉलीवुड अभिनेता मुश्ताक खान जी ने विजेताओं को हार्दिक बधाई दी और कहा, यह पुरस्कार आपकी मेहनत और सोच का प्रतीक है; आगे बढ़ते रहिए!”
 
श्री. नाईकरे मानते हैं कि सफलता का असली मापदंड मुनाफे से कहीं आगे जाता है। उनकी कोचिंग पद्धति में आधुनिक व्यवसायिक रणनीतियाँ माइंडसेट शिफ्ट, मेडिटेशन सेशन और वैदिक साधनाओं के साथ मिलकर एक ऐसा समग्र अनुभव तैयार करती हैं, जिससे प्रतिभागी न केवल आर्थिक रूप से प्रगति करते हैं, बल्कि स्वास्थ्य, संबंध और आंतरिक संतुलन में भी सुधार महसूस करते हैं।
 
 
 
उन्होंने उद्यमीयों कों प्रेरित करने के लिए हिंदी और अंग्रेज़ी में डेरिंग’ यानी जोखिम लेने की कला पर महारत हासील करने के लिए 12 प्रेरणादायक पुस्तकें लिखी हैं।
 
अपने कार्यकाल में श्री. नाईकरे को 30 से अधिक राष्ट्रीय पुरस्कारों से अलग अलग संस्थाओं से सम्मानित किया जा चुका है, जिनमें श्री महात्मा गांधी राष्ट्रीय अभिमान पुरस्कार (2023) प्रमुख हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण और ग्रामीण उद्यमिता में उनका योगदान यह दर्शाता है कि जब समाज सशक्त होता है, तभी वास्तविक सफलता पूरी होती है।
 
आज श्री. देविदास नाईकरे केवल एक कोच नहीं, बल्कि विचारों के क्रांतिकारी हैं। उनका संदेश स्पष्ट है: “जब आपके अंदर विश्वास, आपकी सोच में स्पष्टता, और आपके कर्मों में समर्पण हो, तो कोई भी सीमा आपको रोक नहीं सकती।” 
 

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